अल्बर्ट आइन्स्टाइन का सामान्य सापेक्षता सिद्धांत
अल्बर्ट आइन्स्टाइन द्वारा प्रतिपादित ‘सापेक्षता सिद्धांत’ को वैज्ञानिक चिन्तन की दुनिया में एक सुंदर एवं परिष्कृत सिद्धांत के रूप में देखा जाता है। अब यह सिद्धांत भौतिकी का आधार स्तम्भ बन चुका है। बिना इस सिद्धांत के आधुनिक भौतिकी उसी तरह से असहाय है, जिस प्रकार बिना अणुओं-परमाणुओं की अवधारणाओं के। पेटेंट ऑफिस में एक क्लर्क की हैसियत से कार्य करते हुए आइन्स्टाइन ने सैद्धांतिक भौतिकी के जितने व्यापक सिद्धांत पर कार्य किया, उसे देखकर आश्चर्य होता है। सन् 1901 से आइन्स्टाइन ने प्रत्येक वर्ष अपने कार्यों को जर्मन पत्रिका ‘ईयर बुक ऑफ़ फिजिक्स’ (अन्नालेन डेर फिज़िक) में प्रकाशित करवाया। रोचक तथ्य यह है कि आइन्स्टाइन को उस समय समकालीन विज्ञान-साहित्य का अधिक ज्ञान भी नही था।
अल्बर्ट आइन्स्टाइन
सन् 1905 में जब आइन्स्टाइन मात्र 26 वर्ष के थे, उन्होंने चार शोधपत्र प्रकाशित करवाये, जिसने क्वांटम यांत्रिकी और सापेक्षता सिद्धांत की नींव रखी। ये वही शोध पत्र थे जिसने सैद्धांतिक भौतिकी को झकझोरकर रख दिया। उनमें से एक शोधपत्र बहुत लम्बा था। उस शोध-पत्र का नाम था- ‘ऑन दी इलेक्ट्रो-डायनोमिक्स ऑफ़ मूविंग बॉडीज’ (On the electrodynamics of moving bodies)। यही वह शोध पत्र है, जिसने मानव की वैज्ञानिक संकल्पना ही बदल दी। वास्तव में यह सापेक्षता के विशेष सिद्धांत (Theory of Special Relativity) का विवरण था। आइन्स्टाइन का यह सिद्धांत हमारी दिक्-काल से संबंधित परम्परागत धारणाओं में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया। इसमें एक सीधी रेखा में एकसमान गति से गतिशील प्रेक्षकों/वस्तुओं का विवेचन किया गया है। विशेष सापेक्षता सिद्धांत निम्न दो उपधारणाओं (Postulates) पर आधारित है-
- हमारे दैनंदिन अनुभव हमें दिखाते हैं कि सीधी तथा एकसमान वेग से चलने वाली गाड़ी में वस्तुओं की गति स्थिर गाड़ी में वस्तुओं की गति से बिलकुल भी अलग नहीं होती है। अतः एक-दूसरे से सापेक्ष सीधी और समरूप गति से चलने वाली सभी प्रयोगशालाओं में पिंड की गति भौतिकी के समान नियमों का पालन करती है। इसे गति की सापेक्षता भी कहते है।
- इस उपधारणा के अंतर्गत आइन्स्टाइन ने यह माना कि प्रकाश का वेग हमेशा स्थिर रहता है तथा स्रोत अथवा प्रेक्षक की गति का उस पर कोई प्रभाव नही पड़ता।
विशेष सापेक्षता सिद्धांत के कई दूरगामी निष्कर्ष निकले, जिसने मानव चिन्तन को गहराई से प्रभावित किया। इस सिद्धांत के प्रमुख निष्कर्ष एवं प्रभाव हैं- समय-विस्तारण (Time Dilation), लम्बाई का संकुचन (Length-contraction), वेग के साथ-साथ द्रव्यमान का परिवर्तन आदि। चूँकि वर्ष 1905 में आइन्स्टाइन ने भौतिकी के व्यापक सैद्धांतिक ढांचें को प्रस्तुत किया था, इसलिए इस वर्ष को भौतिकी में ‘चमत्कारी वर्ष’ के नाम से जाना जाता है।
विशेष सापेक्षता सिद्धांत एक-दूसरें के सापेक्ष सरल रेखाओं में तथा एकसमान वेगों से गतिशील प्रेक्षकों/वस्तुओं के लिए ही लागू होती है, परन्तु यहाँ पर यह प्रश्न भी उठ सकता है कि यदि किसी वस्तु की गति जब अ-समान, तीव्र अथवा धीमी होने लगे, या फिर सर्पिल अथवा वक्रिल मार्ग में घूमने लगे, तो क्या होगा ? यह प्रश्न आइन्स्टाइन के मस्तिष्क में विशेष सापेक्षता सिद्धांत के प्रकाशन के दो वर्ष पश्चात् कौधनें लगा। आइन्स्टाइन के जिज्ञासु स्वभाव ने अपने सिद्धांत का और विस्तार कर ऐसे त्वरणयुक्त-फ्रेमों में विकसित करने के लिए प्रेरित किया, जिन्हें एक-दूसरें के सापेक्ष त्वरित किया जा सकता हो। आइन्स्टाइन ने विशेष सापेक्षता सिद्धांत के पूर्व मान्यताओं को कायम रखते हुए तथा त्वरित गति को समाहित करते हुए ‘सामान्य सापेक्षता सिद्धांत’ (Theory of General Relativity) को आज से 100 वर्ष पहले 25 नवंबर, 1915 को ‘जर्मन ईयर बुक ऑफ़ फ़िजिक्स’ में प्रकाशित करवाया। सामान्य सापेक्षता सिद्धांत को ‘व्यापक सापेक्षता सिद्धांत’ भी कहतें हैं। इस सिद्धांत में आइन्स्टाइन ने गुरुत्वाकर्षण के नये सिद्धांत को समाहित किया था। इस सिद्धांत ने न्यूटन के अचर समय तथा अचर ब्रह्माण्ड की संकल्पनाओं को समाप्त कर दिया। कुछ वैज्ञानिकों के अनुसार यह सिद्धांत ‘सर्वोत्कृष्ट सर्वकालिक महानतम बौद्धिक उपलब्धि’ हैं। दरअसल बात यह है कि इस सिद्धांत का प्रभाव, ब्रह्माण्डीय स्तर पर बहुत व्यापक हैं।
वस्तुतः हम पृथ्वी पर आवास करतें हैं, जिसके कारण हम ‘यूक्लिड की ज्यामिती’ को सत्य मानतें हैं, परन्तु दिक्-काल में यह सर्वथा असत्य है। और हम पृथ्वी पर अपनें अनुभवों के कारण ही यूक्लिड की ज्यामिती को सत्य मानतें हैं, और सामान्य सापेक्षता सिद्धांत यूक्लिड के ज्यामिती से भिन्न ज्यामिती को अपनाती हैं। इसलिए सामान्य सापेक्षता सिद्धांत को समझना आशा से अधिक चुनौतीपूर्ण माना जाता रहा है।
इस सिद्धांत की गूढ़ता के बारे में एक घटना विख्यात है। सापेक्षता सिद्धांत को मानने वाले शुरुआती व्यक्तियों में सर आर्थर एंडिग्टन (Sir Arthur Eddington) का नाम विशिष्ट माना जाता है। उनके बारे में एक भौतिक-विज्ञानी ने तो यहाँ तक कह दिया था- ‘‘सर आर्थर! आप संसार के उन तीन महानतम व्यक्तियों में से एक हैं जो सापेक्षता सिद्धांत को समझते हैं।’’ यह बात सुनकर सर आर्थर कुछ परेशान हो गये। तब उस भौतिक-विज्ञानी ने कहा- ‘‘इतना संकोच करने की क्या आवश्यकता है सर ?’’ इस पर सर आर्थर ने कहा-‘‘संकोच की बात तो नही है किन्तु मैं स्वयं सोच रहा था कि तीसरा व्यक्ति कौन हो सकता है ?’’
ऐसा ही एक मजाक कुछ वर्ष पूर्व इंटरनेट पर बहुत लोकप्रिय था, जोकि स्मिथ नामक एक प्रोफेसर के बारे में था। ‘‘प्रोफेसर स्मिथ ने लोगों को सापेक्षता सिद्धांत को सरल भाषा में समझाने के लिए एक पुस्तक की रचना की।’’ किसी ने उस पुस्तक के बारे में लिखा था- ‘‘प्रोफेसर स्मिथ आइन्स्टाइन से भी अधिक प्रतिभावान हैं। जब आइन्स्टाइन ने सर्वप्रथम सापेक्षता सिद्धांत की व्याख्या की थी तब सम्पूर्ण विश्व में मात्र बारह वैज्ञानिकों ने उनके सिद्धांत को समझा था। परंतु जब प्रोफेसर स्मिथ उसकी व्याख्या करते हैं तो एक भी व्यक्ति नही समझ पाता है।’’
सामान्य सापेक्षता सिद्धांत ‘समतुल्यता के नियम’ (Equivalence Principle) पर आधारित है, और इसके अनुसार गुरुत्वाकर्षण बल प्रकाश के ही वेग से गतिमान रहता है। समतुल्यता के नियम को समझने के लिए कल्पना कीजिये कि भौतिकी से संबंधित प्रयोग के लिए पृथ्वी पर एक बंद कमरा है तथा अन्तरिक्ष में त्वरित करता हुआ (9.8 मीटर/से.) एक अन्य कमरा है, दोनों ही कमरे प्रयोग करने के लिए एकसमान होंगें। दरअसल, आइंस्टाइन ने समतुल्यता के नियम के ही द्वारा यह सिद्ध किया कि त्वरण एवं गुरुत्वाकर्षण एक ही प्रभाव उत्पन्न करते हैं। इसके लिए उन्होनें प्रसिद्ध ‘लिफ्ट एक्सपेरिमेंट’ नामक वैचारिक प्रयोग का सहारा लिया।
सर्वप्रथम आप यह कल्पना कीजिये कि एक लिफ्ट है, जो किसी इमारत की सबसे ऊपरी मंजिल पर है। लिफ्ट के तार को काट दिया जाता है और लिफ्ट स्वतंत्रतापूर्वक नीचें गिरने लगता है। जब लिफ्ट गिरने लगेगा तो उसमे सवार लोगों पर भारहीनता का प्रभाव पड़ेगा, ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार से अन्तरिक्ष यात्री अन्तरिक्ष यान में सवार हो करके करते हैं। उस समय पृथ्वी की ओर बेरोकटोक तीव्र गति से गिरने का अनुभव होगा। यदि कोई व्यक्ति जो लिफ्ट के अंदर उपस्थित हों और लिफ्ट के बाहर का कोई दृश्य न देख सके तो उसका अनुभव ठीक उसी प्रकार से होगा, जिस प्रकार से अन्तरिक्ष यात्रियों को होता हैं। कोई भी व्यक्ति यह नही बता सकता हैं कि लिफ्ट में जो घटनाएँ घटी, वह गुरुत्वाकर्षण के कारण घटी हैं अथवा त्वरण के कारण। अत: सामान्य सापेक्षता के सिद्धांत के अनुसार त्वरण तथा गुरुत्वाकर्षण मूलतः एक ही प्रभाव उत्पन्न करतें हैं तथा इनकें बीच अंतर स्पष्ट करना असम्भव हैं।
वास्तविकता में, आइन्स्टाइन के सिद्धांत के अनुसार गुरुत्वाकर्षण एक बल नही हैं, बल्कि त्वरण तथा मंदन का कारक हैं एवं सूर्य के नजदीक ग्रहीय-पथ एवं ग्रहों के निकट उपग्रहीय-पथ को वक्रिल बनाता है। किसी अत्यंत सहंत पिंड के इर्दगिर्द दिक्-काल वक्र हो जाता है। वस्तुतः अब यह पुरानी मान्यता हो चुकी है कि सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण उसके इर्दगिर्द ग्रह दीर्घवृत्ताकार कक्षाओं में परिक्रमा करतें रहतें हैं, बल्क़ि यह कहना कहीं अधिक उचित होगा कि सूर्य का द्रव्यमान अपने इर्दगिर्द के दिक्-काल (space-time) को वक्र कर देता हैं। और दिक्-काल की वक्रता के ही कारण चन्द्रमा पृथ्वी की परिक्रमा करता है।
सामान्य सापेक्षता सिद्धांत ने एक और भविष्यवाणी की, कि अत्यंत प्रबल गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से आने वालें प्रकाश में अभिरक्त विस्थापन (Red-shift) होना चाहिये, जोकि न्यूटन के सिद्धांतों के अनुरूप नहीं था। विस्तृत खगोलीय निरीक्षणों द्वारा प्रबल गुरुत्वीय क्षेत्र से आने वाले प्रकाश में अभिरक्त विस्थापन पाया गया, जोकि आइन्स्टाइन के सिद्धांत के कलन से सटीकता से मेल खाता था। 29 मार्च, 1919 के खग्रास सूर्य ग्रहण के अवसर पर ब्रिटेन के खगोलविदों के एक दल, जिसका नेतृत्व सर आर्थर स्टेनली एडिंग्टन कर रहे थे, ने पश्चिमी अफ्रीका (प्रिंसिप) और ब्राजीलियाई नगर सोबर्ल में सूर्य ग्रहण के चित्र उतारे।
बुध ग्रह की कक्षा में विचलन
सामान्य सापेक्षता के अनुसार, जब तारों का प्रकाश सूर्य के प्रबल गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से गुजरेगा तो उसे थोडा सा मुड़ जाना चाहिये यानी तारे अपने स्थान से विस्थापित नज़र आने चाहिये। आइन्स्टाइन के अनुसार, लगभग 1.75 कोणीय सेकेण्ड का विस्थापन होना चाहिए, जबकि एडिंग्टन के दल ने लगभग 1.64 कोणीय सेकेण्ड का विस्थापन मालूम किया। वर्ष 1952 में एक अमेरिकी अभियान ने अत्यंत सूक्ष्मग्राही उपकरण से 1.70 कोणीय सेकेण्ड का विस्थापन ज्ञात किया। और बाद के भी अभियानों में भी कुछ इसी प्रकार के परिणाम प्राप्त हुए। दिलचस्प बात यह है कि ये सभी परिणाम आइन्स्टाइन के पूर्वनिर्धारित भविष्यवाणी को बिलकुल सत्य सिद्ध करते हैं। इस प्रभाव को आज ‘गुरुत्वीय लेंसिग’ (Gravitational lensing) के नाम से जाना जाता है।
गुरुत्वीय लेंसिग
जब आइंस्टाइन को यह पता चला कि उनके इस निष्कर्ष की पुष्टि प्रायोगिक तौर पर हो चुकी हैं, तो उन्होनें अपने प्रिय मित्र मैक्स प्लांक को एक पत्र में लिखा : ‘‘इस दिन तक मुझें जीवित रख कर के भाग्य ने मुझ पर विशेष कृपा की है…’’ । आइंस्टाइन के इस सिद्धांत को न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण सिद्धांत के बाद दुनिया का सबसे बड़ा आविष्कार माना जाता है। इसके बाद आइन्स्टाइन इस विश्व के सबसे प्रसिद्ध वैज्ञानिक बन गए और बच्चा-बच्चा उनसे परिचित हो गया। आज भी जब कोई बच्चा भौतिकी अथवा गणित में ज्यादा अच्छी रूचि दिखाता हैं, तो हम उसे स्नेहपूर्वक ‘हेल्लो यंग आइंस्टाइन’ कहकर के सम्बोधित करते हैं।
सामान्य सापेक्षता सिद्धांत का एक और पूर्वानुमान था कि यदि किसी अतिसहंत पिंड की गति में त्वरण आता है, तो वह अन्तरिक्ष में लहरे एवं हिचकोले उत्पन्न करेगा जो उस पिंड से दूर गति करेंगी। ये लहरे दिक्-काल में वक्रता उत्पन्न करती हैं। इन लहरों को अब वैज्ञानिक ‘गुरुत्वीय तरंगे’ (Gravitational Waves) कहते हैं। इन तरंगों की गति प्रकाश की गति के जितनी होती है, ये प्रकाश तरंगों के समान ही होती हैं। ब्रह्मांड का प्रत्येक त्वरणशील खगोलीय पिंड गुरुत्वीय तरंगों को उत्पन्न करता है। जिस खगोलीय पिंड का द्रव्यमान अधिक होता है, वह उतनी ही अधिक प्रबल गुरुत्वीय तरंगे उत्पन्न करता है। हमारी पृथ्वी सूर्य के गुरुत्वाकर्षण से त्वरित होकर एक वर्ष की अवधि में सूर्य की एक परिक्रमा पूर्ण करती है। इस कारण से सूर्य के चारों तरफ की कक्षा में पृथ्वी की गति गुरुत्वीय तरंगे उत्पन्न करती है। परन्तु पृथ्वी की यह गति बहुत धीमी है और हमारी पृथ्वी का द्रव्यमान भी इतना कम है कि इससे उत्पन्न होने वाली दुर्बल गुरुत्वीय तरंगों का प्रेक्षण करना लगभग असम्भव है।
टेलर और हल्स द्वारा निरीक्षित दो न्यूट्रोन तारों की कक्षा में ऊर्जा की हानि का आलेख(लाल बिंदु)
सर्वप्रथम वर्ष 1974 में दो खगोल-वैज्ञानिकों जे. एच. टेलर और आर. ए. हल्स ने अप्रत्यक्ष रूप से गुरुत्वीय तरंगों को पकड़ने में सफलता हासिल की। दरअसल, इन दोनों वैज्ञानिकों ने एक-दूसरे की परिक्रमा करने वाले दो न्यूट्रोन तारों (पल्सर) की खोज की थी। ये दोनों जो अत्यधिक द्रव्यमान एवं सघनता वाले तारे हैं, एवं एक-दूसरे की परिक्रमा अत्यधिक वेग से कर रहे हैं। अत्यंत तीव्र गति से परिक्रमा करने के कारण ये अल्प मात्रा में गुरुत्वीय तरंगे भी उत्सर्जित कर रहें हैं। गुरुत्वीय तरंगों के उत्सर्जन से हो रही ऊर्जा की हानि इन तारों को एक-दूसरे की ओर बढ़ने के लिए बाध्य कर रही है। इससे इन तारों के बीच की दूरी धीरे-धीरे कम हो रही है। जब इसकी गणना की गई तो यह कमी आइन्स्टाइन के सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के पूर्णतया अनुरूप मिली। यह गुरुत्वीय तरंगों की उपस्थिति का एक अप्रत्यक्ष प्रमाण था। सामान्य सापेक्षता सिद्धांत की इस पुष्टि के लिए टेलर और हल्स को वर्ष 1993 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया।
वैज्ञानिकों ने हाल ही में गुरुत्वीय तरंगों का प्रथम प्रत्यक्ष अवलोकन किया। इसे वैज्ञानिक सदी की ‘सबसे बड़ी खोज’ मान रहे हैं। गुरुत्वीय तरंगों की खोज की इस योजना को ‘लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रैविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी’ (Laser Interferometer Gravitational-Wave Observatory) या लीगो (LIGO) नाम दिया गया है। लीगो की सहायता से वैज्ञानिकों ने दूर स्थित दो कृष्ण विवरों के बीच हुई हालिया टक्कर से उत्सर्जित गुरुत्वीय तरंगों का पता लगाया है।
सामान्य सापेक्षता सिद्धांत के 100 वर्ष
सामान्य सापेक्षता सिद्धांत ने विगत 25 नवंबर, 2015 को शानदार सौ वर्ष पूर्ण कर लिए हैं। यह सिद्धांत पूरे एक शताब्दी से विभिन्न वैज्ञानिक कसौटियों पर खरा उतरता आया है और आज भी मानव मस्तिष्क का महानतम बौद्धिक सृजन बना हुआ है।
लेखक: प्रदीप
साइंस ब्लॉगर एवं शौकिया विज्ञान संचारक
ई–मेल:- pk110043@gmail.com
बहुत रोचक जानकारी..Thanks a lot
धन्यवाद।