तकनीकी आविष्कार की प्रकृति-प्रेरित अभिप्रेरणा- बायोमिमिक्री

बायोमिमिक्री तकनीकी आविष्कार के क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाला एक नवीन पारिभाषिक शब्द है। बायोमिमिक्री का शाब्दिक अर्थ होता है- जैव (प्रकृति) अभिप्रेरित निर्माण। अर्थात प्राकृतिक जीवों से प्रेरित होकर किया जाने वाला आविष्कार। अगर सरल शब्दों में बायोमिमिक्री को परिभाषित किया जाए तो जैविक परिघटनाओं की नकल द्वारा कृत्रिम उत्पादों, तंत्रों, युक्तियों या मशीनों का विकास ही बायोमिमिक्री कहलाता है। यह शब्द सर्वप्रथम सन् 1982 में प्रयोग में आया। बायोमिमिक्री वास्तव में एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण 54y6है जो कि पूरी तरह से प्राकृतिक एवं जैविक रचनाओं द्वारा प्रेरित है। इस अवधारणा का अभियान्त्रिकी, आधुनिक प्रौद्योगिकी और दैनिक जीवन में व्यापक उपयोग हो रहा है। जेनीन बेनायस नामक महिला जीवविज्ञानी तथा लेखिका ने बोयोमिमिक्री को लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया। उन्होंने 1997 में ”बायोमिमिक्री- इनोवेशन इन्सपायर्ड बाई नेचर” पुस्तक लिखी तथा इसे परिभाषित तथा व्याख्यायित किया। उनके अनुसार “कोई सजीव जीवन के लिए अनुकूल परिस्थितियों का निर्माण करता है”। यानी कोई भी जैविक निर्माण लाखों-करोड़ों वर्षों के सतत् जैवविकास एवं प्राकृतिक अनुकूलन का परिणाम होता है। अतएव इन जीवों से प्रेरणा लेकर मानव जीवन के लिए उपयोगी आविष्कार किए जा सकते हैं।

वर्तमान समय में बायोमिमिक्री की उपयोगिता और भी अधिक बढ़ गयी है। जापान में निर्मित बुलेट ट्रेन इसका एक उत्कृष्ट उदाहरण है। किंगफिशर पक्षी के चोंच की संरचना को ध्यान में रख कर हवा से बिल्कुल कम प्रतिरोध करने वाली जापान की बुलेट ट्रेन की संरचना निर्धारित की गई। वैज्ञानिकों ने ट्रेन की नासिका को किंगफिशर की चोंच जैसा बनाकर देखा तो पाया कि अब हवा का प्रतिरोध न्यूनतम हो गया है जिससे यह तीव्रतम गति से चलती है तथा कम समय में ज्यादा दूरी तय कर लेती है। ज्ञातव्य है कि सर्वप्रथम बुलेट ट्रेन जापान में चलायी गयी थी। लेकिन बाद में इसकी उपयोगिता को देखकर विश्व के कई देश इसकी तरफ आकर्षित हुए।

वर्तमान में कई देशों में बुलेट ट्रेन का परिचालन बड़े पैमाने पर हो रहा है। हमारे दे454श में भी बुलेट ट्रेन चलाने की पहल की गयी है तथा इस बारे में जरूरी तैयारियां चल रही हैं। वह दिन बहुत दूर नहीं जब भारत में भी बुलेट ट्रेन का सपना साकार हो जाएगा। पहली बुलेट ट्रेन मुंबई से अहमदाबाद के बीच प्रस्तावित है तथा जापान के सहयोग से यह संभव होने जा रहा है। वास्तव में बुलेट ट्रेन किसी राष्ट्र की तकनीकी उत्कृष्टता तथा उसके उद्योग कौशल का द्योतक है। इससे किसी देश का आत्मविश्वास भी झलकता है कि हम भी ऐसी तकनीकी रखते हैं। हम भी ऐसा कर सकते हैं।

दुनिया के महानतम् सार्वकालिक वैज्ञानिक, अभियंता, शिल्पकार तथा आविष्कारक इटली के लिओनार्दो दा विंची ने सन् 1445 में सर्वप्रथम उड़ने वाले यंत्र की कल्पना की थी तथा उसे चित्रों में उकेरा था। उन्होंने पक्षियों की शारीरिक संरचना और इनके उड़ने की तौर-तरीकों का बारीकी से निरीक्षण किया और इसके आधार पर पैराशूट और हवाई जहाज के विविध चित्र बनाये। ये चित्र विमान के आविष्कार में बहुत ही उपयोगी सिद्ध हुए। राइट ब्रदर्स ने भी “फ्लायर” नामक अपने विमान को डिज़ाइन करने में पक्षियों की उड़ान से प्रेरणा ली थी। गौरतलब है कि वर्ष 1903 में राइट बंधुओं ने पहली बार हवा में विमान उड़ाने में सफलता पायी थी। यह 20वीं सदी का एक महानतम आविष्कार माना जाता है।

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स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय में शोधकर्ताओं ने देखा कि पक्षी समूह प्रायः रोमन लिपि के वी (V) अक्षर के आकार में उड़ान भरते हैं। उसमें सबसे आगे रहने वाले पक्षी का क्रम हमेशा बदलता रहता है। आगे वाला पक्षी अपने ठीक पीछे वाले पक्षी को आगे आने का मौका देता है। यह क्रम निरन्तर चलता रहता है और वे अपनी उड़ान को ऊर्जा के सामूहिक योगदान द्वारा एकसमान बनाए रखते हैं। इस प्रकार पक्षी वी- आकार का उपयोग करके अपने उड़ान की दूरी को 70 प्रतिशत से अधिक बढ़ाने में सक्षम हो जाते हैं। प्रो. ऐलन क्रू के नेतृत्व वाले शोधकर्ताओं ने पक्षियों की इसी तकनीक का उपयोग विमानों के एक समूह पर करके देखा और पाया कि यदि विमानों को एक साथ वी-आकार में उड़ाया जाये तो विमान को एक-एक कर उड़ाने की अपेक्षा 15% तक ईंधन बचाया जा सकता है। यह भविष्य में ईंधनों के संरक्षण की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। यद्यपि इस दिशा में बहुत सारा अनुसंधान किया जाना बाकी है। लेकिन कहा जा सकता है कि यह भी बायोमिमिक्री का एक अच्छा उदाहरण है।

पक्षियों की इस तकनीक से और भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है कि इतने पक्षी एक साथ बगैर एक दूसरे से टकराये और दूरी बनाकर कैसे उड़ते हैं? यह नि:संदेह एक शोध का विषय है। इस पर भविष्य में और भी शोध कार्य किये जा सकते हैं जो कि विमान प्रौद्योगिकी की दिशा में उपयोगी कदम हो सकता है। यह भी ताज्जुब की बात है कि मछलियों के झुंड में तैरते समय कभी भी कोई दो मछली परस्पर नहीं टकराती। इस सामान्य-सी परिघटना में भी तकनीकी आविष्कार तथा विकास के बीज अंतर्निहित हैं।

जलीय वनस्पति कमल भी बायोमिमिक्री के लिए एक अच्छा उदाहरण है। वैज्ञानिकों ने देखा कि कमल की पत्तियों पर पानी नहीं ठहरता तथा सतह पर चिपकता भी नहीं। इस तरह कमल की पत्ती साफ-सुथरी तथा सूखी बनी रहती है। इसी बात को आधार बनाते हुए उन्होंने एक नये तरह के पेंट का विकास किया जिस पर पानी टिकता नहीं। इससे पेंट खराब नहीं होता और सतह को साफ करने की आवश्यकता भी नही पड़ती। पेंट की सतह स्वयं ही साफ हो जाती है। वर्तमान समय में इसका प्रयोग बड़े पैमाने पर हो रहा है। फर्नीचर और घरों की रंगाई-पुताई के लिए इस तरह के पेंट का प्रयोग किया जाता है। इससे इनमें सीलन नहीं लगती और ये काफी दिनों तक सुरक्षित रहते हैं।

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इसी तरह किसी पत्ती की जैविकी का अध्ययन एक परिष्कृत सौर ऊर्जा सेल के निर्माण में सहायक हो सकता है। हरी पत्तियों में होने वाली प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया ऊर्जा रूपांतरण और संचयन का सर्वोत्तम उदाहरण है। सौर ऊर्जा बैटरी भी यही कार्य करती है। इसमें भी सौर ऊर्जा का संचयन और रूपांतरण होता है। इस प्रकार प्रकाशसंश्लेषण की क्रिया से प्रेरित होकर सौर ऊर्जा बैटरी की दक्षता को और अधिक बढ़ाया जा सकता है जिससे कि अधिकाधिक ऊर्जा का संचयन किया जा सके। इस बारे में अनुसंधान प्रगति पर है तथा आशा है कि आने वाले दिनों में नए आविष्कार सामने आएंगे।

1 अभी हाल ही में एक विशेष तरह के चिपकाने वाले टेप की खोज की गई है। इस टेप में किसी भी तरह के गोंद का प्रयोग नहीं किया गया है। वैज्ञानिकों को इसे बनाने की प्रेरणा एक तरह के सरीसृप गेको से मिली। इस सरीसृप के तलवों में सूक्ष्म ब्रश जैसी अनेक संरचनाएं होती हैं जिनकी वजह से यह दीवारों से नहीं फिसलता है और आराम से चल लेता है।

 

2अगर संसार के सबसे बड़े जीव व्हेल की बात करें तो इसके पंख, पूंछ और फ्लिपर्स की विशेषताओं की नकल उतार कर इंजीनियरों को और अधिक कुशल पवन टर्बाइन डिजाइन करने में सफलता प्राप्त हुई है। कनाडा की टोरंटो स्थित कंपनी ‘व्हेलपॉवर’ ने एक ऐसा क्रांतिकारी ब्लेड डिजाइन किया है जो कि 20% विद्युत उत्पादन बढ़ाने के साथ शोर को कम करने में सक्षम है। इस डिजाइन को पंखे, पंप और कम्प्रेशर में इस्तेमाल किया जा सकता है और अक्षय ऊर्जा के संरक्षण और संग्रह को बढ़ावा दिया जा सकता है जो कि पर्यावरण संरक्षण के लिए भी उपयोगी हो सकता है।

3 तकनीकी के क्षेत्र में ऐसे अनेकानेक से उदाहरण है जो कहीं न कहीं बायोमिमिक्री से प्रेरित हैं और मानव जीवन के लिए उपयोगी सिद्ध हो रहे हैं। अभियांत्रिकी और आधुनिक प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बायोमिमिक्री के प्रयोग तथा विस्तार की असीम संभावनाएं हैं। इसने नये उभरते क्षेत्र के रूप में वैज्ञानिकों और आविष्कारकों का ध्यान आकर्षित किया है। कार्य और ऊर्जा दक्षता, पर्यावरण के अनुकूल और सुलभ होने जैसे गुणों के कारण जैव-अभिप्रेरित उत्पाद लोकप्रिय होते हैं और दूसरे उत्पादों की तुलना में कहीं अच्छे होते हैं। वर्तमान परिदृश्य में जब कि पूरा विश्व पर्यावरण संकट से जूझ रहा है, ऐसे में ये उत्पाद अपने पर्यावरणीय अनुकूलता के कारण अधिक उपयोगी हो सकते हैं।

4 उत्तरीगोलार्द्ध में घरों की डिजाइन शंक्वाकार होती है। यह चीड़ तथा देवदार जैसे पेड़ों से प्रेरित है। ऊंचे स्थानों पर हिमपात होता है, साल भर मौसम ठंडा रहता है, काफी समय तक बर्फबारी होती है। इसलिए घर की छतें शंकु के आकार की बनायी जाती हैं जिससे हिमपात में हिम फिसल जाए तथा छत पर इकट्ठा न हो। अगर हिम जमती जाएगी तो भार से छत टूट सकती है। यह एक तरह की बायोमिमिक्री ही है जो कि उत्तरी गोलार्द्ध तथा बहुत ऊंचे पर्वतीय स्थानों के लिए बहुत माकूल होती है। पर्वतीय क्षेत्रों में भवन निर्माण की अहम तकनीक प्रदान करती है।

5वेल्क्रो भी बायोमिमिक्री का एक अनुपम उदाहरण है। इसकी खोज सन् 1941 में स्विस इंजीनियर जॉर्ज डि मेस्ट्रल द्वारा की गयी थी। वेल्क्रो का आविष्कार काँटेदार फल वाले पौधों से अभिप्रेरित होकर किया गया था। हमारे आसपास बहुत से पौधे पाये जाते हैं जिसमें काँटेदार फल लगते हैं। जब हम उन पौधों के पास से कभी गुजरते हैं तथा हमारे कपड़े उनसे छू जाते हैं तो ये कँटीले फल हमारे कपड़ों पर चिपक जाते हैं। मेस्ट्रल ने इसी तकनीक का उपयोग करके वेल्क्रो का निर्माण किया था। वेल्क्रो का उपयोग वर्तमान समय में व्यापक स्तर पर हो रहा है। इसका उपयोग बैग, सेंडिल, जूतों, कपड़ों इत्यादि में किया जाता है। वेल्क्रो शुरू में सूत से बनाए जाते थे जिसकी अपनी सीमाएं थीं। इसलिए बाद में नायलॉन तथा पॉलीस्टर के वेल्क्रो बनाए जाने लगे जो कहीं ज्यादा बेहतर हैं।

किसी भी युद्ध में खुफिया जानकारी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। अगर दुश्मन की गतिविधियों के बारे में सटीक जानकारी उपलब्ध है तो उनके द्वारा मिलने वाली चुनौतियों का सामना सरलतापूर्वक किया जा सकता है। रोबोट जासूसी विमान, इस दिशा में एक महत्वपूर्ण खोज है जिसकी संरचना एवं कार्यप्रणाली चमगादड़ से प्रेरित है जो ‘प्रतिध्वनि द्वारा स्थिति निर्धारण’ सिद्धान्त पर कार्य करता है। रोबोट विमान सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और कंपन के द्वारा संचालित होता है। शुरू में इस छोटे विमान का उपयोग, अमेरिकी सेना में सैनिकों के लिए तात्कालिक आंकड़े जुटाने के लिए किया जाता था। इसकी उपयोगिता को देखते हुए कई देशों की सेनाओं ने इसका उपयोग करना प्रारम्भ कर दिया है ।

6अगर बात की जाए विश्व की जानी-मानी कार निर्माता कम्पनी मर्सिडीज की, तो इसके द्वारा निर्मित मर्सिडीज-बेंज बाक्सफिश कार बायोमिमिक्री का एक बेहतरीन उदाहरण है। इस कार को बाक्सफिश नामक मछली की संरचना से प्रेरित होकर बनाया गया है। गौरतलब है कि बाक्सफिश अपनी आयताकार शारीरिक संरचना के कारण  पानी में अत्यधिक तीव्र गति से अभिगमन करती है। यह मछली प्रायः उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पायी जाती है।

वैज्ञानिकों के दल ने बाक्सफिश के बाहरी त्वचा, प्रतिरोधकता एवं शारीरिक संरचना का बारीकी से अध्ययन तथा विश्लेषण किया और उसके आधार पर इस कार को डिजाइन किया। हल्के वजन और डीजल इंजन वाली यह द्रुतगामी कार लगभग 30 किलोमीटर प्रति लीटर तक का ईंधन औसत हासिल करने में समर्थ है। यह पेट्रोलियम संरक्षण की दृष्टि से भी अत्यन्त उपयोगी है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि इस कार की तीव्र गति, ईंधन संरक्षण तथा हल्के वजन जैसी विशेषताएं निश्चित रूप से आकर्षक और लोकलुभावन है।

अफ्रीका महाद्वीप में पायी जाने वाली मोर्फो तितली के पंखों का हल्का नीला रंग रंजकता के बजाय, इनकी संरचनात्मक रंगाई के कारण होता है जो कि विभिन्न प्रकाशिक घटनाओं, व्यतिकरण, विवर्तन और प्रकीर्णन के कारण  एक विशिष्ट तरंगदैर्ध्य के जीवंत रंग (हल्का नीला) के रूप में परिलक्षित होता है। मोर्फो तितली के पंखों के इन्हीं गुणों के आधार पर प्रदर्शन प्रौद्योगिकी को विकसित किया गया। क्वालकॉम द्वारा 2007 में इस तकनीक का व्यवसायिक उपयोग प्रारम्भ किया गया था। वर्तमान समय में इस तकनीक का उपयोग मोबाइल फोन तथा ई-बुक रीडर में इच्छित रंग का प्रदर्शन प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

8अगर बात की जाए हाथी के सूंड़ की, तो यह भी बायोमिमिक्री के लिए एक अच्छा उदाहरण है। जर्मन इंजीनियरिंग फर्म ‘फेस्टो’ द्वारा निर्मित बायोमेकाट्रोनिक हैंडलिंग प्रणाली हाथी के सूंड़ पर आधारित है। इस तकनीक द्वारा एक विशेष प्रकार की रोबोटिक भुजाओं का निर्माण किया गया है जो भारी से भारी वजन को आसानी से उठा सकती है। रोबोटिक भुजा एक ‘कशेरुकीय’ संरचना होती है जिसमें छोटी-छोटी हवा की थैलियां लगी होती हैं जिससे इनको आसानी से स्प्रिंग की तरह बढाया या घटाया जा सकता है। रोबोटिक्स के क्षेत्र में यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। इसकी सहायता से भारी वजन की वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान तक सुगमता से ले जाया जा सकता है। खास कर के दुर्गम इलाकों के लिए यह तकनीक बहुत उपयोगी साबित हुई है।

उपरोक्त उदाहरणों तथा चर्चा से यह स्पष्ट है कि हमारे आसपास बहुत-सी चीजें हैं जो बायोमिमिक्री से प्रेरित हैं और वे मानव जीवन के लिए उपयोगी सिद्ध हो रही हैं। अभियांत्रिकी और आधुनिक प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में बायोमिमिक्री के इस्तेमाल की असीम संभावनाएं हैं। इस नई उभरती विधा ने वैज्ञानिकों और तकनीकीविदों का ध्यान खींचा है। कार्य और ऊर्जा दक्षता, पर्यावरण के अनुकूल और सुलभ होने जैसे गुणों के कारण जैवअभिप्रेरित उत्पाद लोकप्रिय होते हैं और दूसरे उत्पादों की तुलना में कहीं अच्छे होते हैं। वर्तमान वैश्विक परिप्रेक्ष्य में जब कि पूरी दुनिया पर्यावरणीय खतरों से जूझ रही है, ऐसे में यह तकनीक धरती के पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में भी अप्रतिम भूमिका निभाने की सामर्थ्य रखती है।

 

–  डॉ. कृष्ण कुमार मिश्र

एसोशिएट प्रोफ़ेसर

होमी भाभा विज्ञा शिक्षा केंद्र

टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान

वी. एन. पुरव मार्ग, मानखुर्द

One thought on “तकनीकी आविष्कार की प्रकृति-प्रेरित अभिप्रेरणा- बायोमिमिक्री

  • June 26, 2016 at 7:09 am
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    Happy to see my article on the portal also.

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