अंतरिक्ष में खुलती जीवन की परतें

अंतरिक्ष में रहने के दौरान शरीर में क्या बदलाव आते  है ,इस पर अनूठा प्रयोग

1अमेरिका के अंतरिक्ष वैज्ञानिक स्कॉट केली 340 दिन अंतरिक्ष में बिताने के बाद धरती पर लौट आए। उनके साथ उनके रूस की अंतरिक्ष यात्री मिखाइल कोर्निको भी धरती पर सकुशल  लौट आए। एक अलग तरह के प्रयोग को अंजाम देने के लिए अंतरिक्ष में भेजे गए केली का यह मिशन इस परियोजना पर प्रकाश डालने के लिए किया गया कि   इंसान पर अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने के दौरान क्या प्रभाव पड़ता है । यह अपनी तरह का एक अनूठा प्रयोग था जिसके बहुत चौकानें वाले परिणाम आयें है जो भविष्य में अंतरिक्ष विज्ञान और सम्पूर्ण मानवता के लिए बहुत उपयोगी हो सकते है ।

 स्कॉट केली व जुड़वा भाई का हुआ अध्ययन

पिछले साल 27 मार्च को मिशन शुरू हुआ था। इसका मकसद स्पेस में लंबे समय तक रहने वाले व्यक्ति के शरीर पर पडऩे वाले प्रभाव को जानना है। केली का जुड़वा भाई मार्क केली   पृथ्वी पर रहा। वैज्ञानिकों ने तुलनात्मक अध्ययन कर नतीजे निकालने के लिए केली को स्पेस में भेजा था। इस दौरान केली ने अंतरिक्ष से धरती के बीच  144 मिलियन मील की यात्रा की  और 5,440 बार दुनिया के चक्कर लगाए , 10,880 बार सूर्योदय और सूर्यास्त के नजारे से सामना हुआ.केली की इस यात्रा ने एक रिकार्ड भी बना दिया .यह

किसी भी अमरीकी (स्कॉट केली, 340 दिन) द्वारा यह अंतरिक्ष बिताया गया सबसे लंबा प्रवास था। रूस के वालेरी पुलायको ने स्पेस में 438 दिन बिताए हैं।
अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के अंतरिक्षयात्री स्कॉट केली  340 दिन अंतरिक्ष में बिताने के बाद धरती पर लौटने के बाद जब मेडिकल जांच किया गया तो उनकी लंबाई दो इंच बढ़ गई। जबकि उम्र का आंकलन किया गया तो वह 10 मिली सेकेंड घट गई। अंतरिक्ष यात्री स्कॉट कैली नासा के जुड़वा मिशन का हिस्सा थे और वह कुछ ही दिनों पहले पृथ्वी पर लौटे हैं। स्कॉट और उनके जुड़वा भाई मार्क केली की मदद से नासा ने ये देखने की कोशिश की थी कि अंतरिक्ष में रहने के दौरान शरीर में क्या बदलाव आते हैं। स्कॉट एक साल अंतरिक्ष स्टेशन में थे और उनका भाई पृथ्वी पर। लौटने पर स्कॉट की लंबाई मार्क से दो इंच बढ़ गई है। दोनों भाइयों की लंबाई मिशन शुरू होने से पहले बिल्कुल एक समान थी।

नासा का अध्ययन   

नासा शारीरिक और मानसिक, दोनों तरह के बदलावों का अध्ययन कर रही है. इस बात की जांच-परख की जा रही है कि अंतरिक्ष के वातावरण का हृदय और मस्तिष्क पर क्या प्रभाव पड़ता है. यहां शरीर का मेटाबॉलिज्म कैसे काम करता है और शरीर के भीतर सूक्ष्म लेकिन अहम अंग कैसे संचालित होते हैं. वैज्ञानिक यह पता लगाने की भी कोशिश कर रहे हैं कि अंतरिक्ष में इंसानों की अनुभूति और तर्क की क्षमता किस हद तक प्रभावित होती है.इन दोनों भाइयों के शरीर पर पूरे साल परीक्षण चले हैं. स्कॉट अब धरती के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में दोबारा आ चुके हैं. यह किस तरह उनके ऊपर असर डालेगा यह जानने के लिए उनके ऊपर आगे भी परीक्षण चलते रहेंगे. गुरुत्वहीनता की स्थिति में शरीर और मस्तिष्क पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को समझकर वैज्ञानिक उनसे बचने और उन्हें खत्म करने के नए तरीके विकसित कर सकते हैं

इंसान की सुदूर अंतरिक्ष यात्राओं के लिहाज से ये अध्ययन खासे महत्वपूर्ण साबित होने जा रहे हैं. गुरुत्वहीनता की स्थिति में शरीर और मस्तिष्क पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को समझकर वैज्ञानिक उनसे बचने और उन्हें खत्म करने के नए तरीके विकसित कर सकते हैं. ये लंबी यात्राओं पर अंतरिक्ष यात्रियों को स्वस्थ रखने में मददगार साबित होंगे. इन्हीं की बदौलत इंसान मंगल पर जा पाएगा और वहां से सकुशल वापस लौट पाएगा.

कैसे उम्र घट गई  

3स्कॉट केली की उम्र कैसे घट गई ? इस सवाल का जवाब आइंस्टीन के सापेक्षता सिद्धांत में छिपा है .समय और गति के इस सिद्धांत के अनुसार अगर दो वस्तुएं अलग अलग गति से घूम रही है तो जो धीरे घूम रहा होगा ,उसके लिए समय ज्यादा तेजी से गुजरेगा .चूँकि स्कॉट केली अंतरिक्ष में हमारी तुलना में तेजी से घूम रहें थे ,इसलिए वे अपने भाई से उम्र में लगभग १० मिली सेकंड युवा हो गए .

धरती से 250 मील ऊपर अंतर्राष्ट्रीय स्पेस स्टेशन पर गुरुत्वाकर्षण नहीं है। इसलिए वहां उम्मीद से ज्यादा तेजी से समय निकलता है। लेकिन स्पेस स्टेशन धरती की अपेक्षा ज्यादा तेजी से भी घूमता है। यह 17150 मील प्रति घंटा की रफ्तार से चलता है। इस कारण यह धरती के समय आंकलन से थोड़ा भिन्न भी हो जाता है। इस कारण अंतरिक्ष यात्री स्कॉट की उम्र में सेकेंड के भी कई गुना कम उम्र की कमी दर्ज की गई। केली अपने भाई से 6 मिनट बाद जन्मे थे। पर अब वह उनसे 6 मिनट 10 मिलीसेकेंड छोटे हो गए।
स्कॉट के भाई मार्क कैली भी एक अंतरिक्षयात्री हैं। उन्होंने खुद ही नासा के सामने ‘ट्विन स्टडी’ का हिस्सा बनने का प्रस्ताव पेश किया था। नासा का कहना है कि स्कॉट और मार्क के शरीर का अंतर समझ कर वे बेहतर तरीके से अपने मंगल मिशन की तैयारी कर सकेंगे। नासा पहले से ही माइक्रोग्रैविटी के शरीर पर पड़ने वाले कुछ बदलावों के बारे जानता है। लेकिन इस मिशन के जरिए कई नई बातें भी पता चलेंगी।

कैसे बढ़ गया स्कॉट केली का कद

अंतरिक्ष में कम गुरुत्वाकर्षण होने के कारण शरीर जमीन से कुछ इंच ऊपर हवा में तैरता रहता है। इसके कारण रीढ़ की हड्डी के जोड़ बार-बार ऊपर-नीचे होने से बढ़ जाते हैं। इससे शरीर थोड़ा लंबा हो जाता है। स्कॉट धरती पर आ चुके हैं। उनकी रीढ़ कुछ दिनों में सामान्य हो जाएगी।

मानव शरीर पर गुरुत्वहीनता का क्या प्रभाव पड़ता है

धरती और अंतरिक्ष के गुरुत्वाकर्षण बल में अंतर बस यही है कि यहां हम वजन महसूस करते हैं लेकिन अंतरिक्ष में ऐसा नहीं है. जब हम यहां बैठते हैं या खड़े होते हैं तो हमारा शरीर गुरुत्वाकर्षण बल के खिलाफ जूझ रहा होता है. हमारी मांसपेशियों और हड्डियों को चलने, दौड़ने या कूदने के लिए हमेशा ही गुरुत्वाकर्षण बल के खिलाफ काम करना पड़ता है. गुरुत्वहीनता की स्थिति में ऐसा नहीं है इसलिए शरीर को धीरे-धीरे नुकसान पहुंचने लगता है. यह ठीक वैसा ही है कि जैसे हम नियमितरूप से कसरत करते हों और फिर अचानक यह बंद कर दें तो हमारी मांसपेशियां पहले की तुलना में कमजोर होने लगती हैं. अंतरिक्ष में इंसानों की कोशिकाओं का फाइबर सिकुड़ने लगता है. वे कमजोर होने लगते हैं और उनके मस्तिष्क और शरीर के बीच संवाद प्रक्रिया मंद पड़ने लगती है.

2अंतरिक्ष में हड्डियों के भीतर पाए जानेवाले खनिजों का अनुपात कम होने लगता है. इस वजह से वजन उठाने के लिए शरीर के जिन हिस्सों पर ज्यादा जोर पड़ता है, जैसे रीढ़ की हड्डी, पैर और घुटने, उनमें टूट-फूट की संभावना बढ़ जाती है. लंबे समय तक गुरुत्वहीनता की स्थिति का आंखों पर भी असर पड़ता है. यह पाया गया है कि हर पांच में एक अंतरिक्षयात्री की नजर कमजोर हो जाती है. इसके अलावा अन्य सामान्य शारीरिक गतिविधियां जिनपर अंतरिक्षयात्रा के दौरान ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता वे भी इसका बुरा प्रभाव झेलती हैं. एक अंतरिक्ष यात्री क्रिस हेडफील्ड जब आईएसएस से धरती पर वापस आए तो उनके मुताबिक यहां उन्हें होंठ और जीभ तक वजनी मालूम पड़ रहे थे और इसका नतीजा यह हुआ कि उन्हें अपने बोलने का तरीका बदलना पड़ा. शरीर कमजोर हो जाने की वजह से ही अंतरिक्ष यात्रियों को धरती पर वापस आने के बाद विशेष प्रकार की ‘सपोर्टिंग चेयर’ पर बिठाया जाता है.

अंतरिक्ष यात्री जब अंतरिक्षीय कक्षा में पहुंचते हैं तो उन्हें विशेष प्रकार के शारीरिक व्यायाम करने पड़ते हैं ताकि इस वातावरण में उनके शरीर को कम से कम नुकसान हो. इसके लिए विशेष मशीनें बनाई गई हैं. यहां अंतरिक्ष यात्रियों को विकिरण से भी खतरा होता है जिससे उनमें कैंसर की संभावना बढ़ जाती है. इतने लंबे समय तक परिवार से दूर रहने या अकेले रहने की वजह से उनका मानसिक स्वास्थ्य भी प्रभावित हो सकता है.

अंतरिक्ष विज्ञान के लिए अहम

क्या  स्कॉट केली की अंतरिक्ष से वापसी हमारी भविष्य की मंगल यात्रा का एक अहम हिस्सा है .अंतरिक्ष में एक साल बिताकर लौटे इस अंतरिक्षयात्री के शरीर का अध्ययन इंसानों को सुदूर ग्रहों की यात्रा के लिए बेहतर तरीके से तैयार कर देगा. स्कॉट केली पर यह अनूठा प्रयोग भविष्य में इंसानों के लिए अंतरिक्ष यात्राएं और सुरक्षित जरूर बना देगा . संभव है कि इसके बाद मानवजाति की अंतरिक्ष यात्रा का अगला पड़ाव मंगल या उससे दूर के ग्रह हों. केली के एक साल अंतरिक्ष में बिताने का सबसे अहम मकसद था इतने लंबे अरसे तक मानव शरीर पर गुरुत्वहीनता की स्थिति का अध्ययन उपलब्ध कराना ताकि अंतरिक्ष में मानव शरीर से जुडी जीवन की पर्तें खुल सकें ,और भविष्य में इंसान ब्रह्मांड को एक नयें नजरिए के साथ समझ सकें .

(लेखक शशांक द्विवेदी चितौड़गढ, राजस्थाइन में मेवाड़ यूनिवर्सिटी में डिप्टी डायरेक्टर (रिसर्च) हैं और  टेक्निकल टूडे पत्रिका के संपादक हैं। 12 सालों से विज्ञान विषय पर लिखते हुए विज्ञान और तकनीक पर केन्द्रित विज्ञानपीडिया डॉट कॉम के संचालक है  । एबीपी न्यूज द्वारा विज्ञान लेखन के लिए सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर का सम्मान हासिल कर चुके शशांक को विज्ञान संचार से जुड़ी देश की कई संस्थाओं ने भी राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया है। वे देश के प्रतिष्िंचात समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में लगातार लिख रहे हैं।)

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