डिग्री और स्किल के बीच बढ़ता फ़ासला

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष की  एक रिपोर्ट के अनुसार दुनियाँ भर में भारत सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश है। कुल जनसंख्या के मामले में भारत , चीन से पीछे हैं, लेकिन 10 से 24 साल की उम्र के 35.6 करोड़ लोगों के साथ भारत सबसे अधिक युवा आबादी वाला देश है। चीन 26.9 करोड़ की युवा आबादी के साथ दूसरे स्थान पर है। इस मामले में भारत व चीन के बाद इंडोनेशिया (6.7करोड़), अमेरिका (6.5करोड़), पाकिस्तान (5.9करोड़), नाइजीरिया (5.7करोड़), ब्राजील 5.1करोड़ व बांग्लादेश (4.8करोड़) का स्थान आता है।
अब सवाल यह है की इतनी बड़ी युवा आबादी का भारत क्या सकारात्मक उपयोग कर पा रहा है क्योकि आंकड़ो के मुताबिक़ साल दर साल बेरोजगारी बढ़ रही है और देश में स्किल्ड युवाओं की भारी संख्या में कमी है । पिछलें दिनों सीआईआई की इंडिया स्किल रिपोर्ट-2015 के मुताबिक हर साल सवा करोड़ युवा रोजगार बाजार में आते हैं । आने वाले युवाओं  में से 37 प्रतिशत ही रोजगार के काबिल होते हैं। यह आंक़डा कम होनेके बावजूद पिछले साल के 33 प्रतिशत के आंक़डे से ज्यादा है और संकेत देता है कि युवाओं को स्किल देने की दिशा में धीमी गति से ही काम हो रहा है।एक दूसरी रिपोर्ट के अनुसार तो हर साल देश में 15 लाख इंजीनियर बनते है लेकिन उनमें से सिर्फ 4 लाख को ही नौकरी मिल पाती है बाकी सभी बेरोजगारी का दंश झलने को मजबूर है । नेशनल एसोशिएसन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज यानी नैसकाम के एक सर्वे के अनुसार  75 फीसदी टेक्निकल स्नातक नौकरी के लायक नहीं हैं। आईटी इंडस्ट्री इन इंजीनियरों को भर्ती करने के बाद ट्रेनिंग पर करीब एक अरब डॉलर खर्च करते हैं। इंडस्ट्री को उसकी जरुरत के हिसाब से इंजीनियरिंग ग्रेजुएट नहीं मिल पा रहें है । डिग्री और स्किल के बीच फासला बहुत बढ़ गया है । इतनी बड़ी मात्रा में पढ़े लिखे इंजीनियरिंग बेरोजगारों की संख्या देश की अर्थव्यवस्था और सामजिक स्थिरता के लिए भी ठीक नहीं है ।
पिछले दिनों स्किल इंडिया कैम्पेन को लांच करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि “आईआईटी नहीं बल्कि आईटीआई है सदी की जरूरत “.उनकी इस बात का सीधा मतलब प्रशिक्षित युवा से था जिसे अपनी आजीविका चलानें के लिए कुछ काम आता हो । क्योकि आज देश में हालात ऐसे है कि आधे से ज्यादा पढ़े लिखे उच्च शिक्षित युवा बेरोजगार है, उन्हें कोई काम नहीं आता ,या आंशिक तौर पर जो काम आता है उसमें वो ठीक से प्रशिक्षित नहीं है । प्रधानमंत्री मोदी की इस बात से सहमत हुआ जा सकता है लेकिन क्या देश में आईटीआई की दशा ठीक है ?क्या वो गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देने के लिए जाने जाते है । सच्चाई तो यह है कि देश में अधिकांश आईटीआई का स्तर ठीक नहीं है ,साथ में अधिकांश आईटीआई के बच्चें और वहाँ के शिक्षक दोनों ही प्रशिक्षित नहीं है । आईटीआई अध्यापकों के उचित प्रशिक्षण के लिए अभी तक कोई ठोस सिस्टम विकसित ही नहीं हो पाया है । वैसे तो देश में युवाओं को शिक्षा और वोकेशनल ट्रेनिंग देने के लिए कई कार्यक्रम चल रहें है लेकिन उन सब में सबसे अहम है आईटीआई (औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान ) क्योकि इसका बुनियादी ढाँचा गाँव और कस्बों तक मौजूद है । शिक्षाविद् डॉ अशोक कुमार गदिया के अनुसार अगर सरकार सिर्फ आईटीआई की गुणवत्ता को सुनिश्चित कर दे तो देश भर के आधे बेरोजगार युवाओं को रोजगार मिल जाए । असली समस्या यह है हर नई सरकार आते ही अपने एजेंडे के हिसाब से कई कार्यक्रम चलाती है लेकिन वो पुराने बुनियादी और बने बनाए ढांचे को ठीक नहीं करती ना ही ठीक करना चाहती । सरकार बदलते ही कार्यक्रम बदलतें रहते है लेकिन तस्वीर नहीं बदल पाती क्योकि वो जमीनी स्तर पर काम नहीं करते ।
असल में हमनें यह बात समझनें में बहुत देर कर दी की  अकादमिक शिक्षा की तरह ही बाजार की मांग के मुताबिक उच्च गुणवत्ता वाली स्किल की शिक्षा देनी भी जरूरी है। एशिया की आर्थिक महाशिक्त दक्षिण कोरिया ने स्किल डेवलपमेंट के मामले में चमत्कार कर दिखाया है और उसके चौंधिया देने वाले विकास के पीछे स्किल डेवलपमेंट का सबसे महत्वपूर्ण योगदान है। इस मामले में उसने जर्मनी को भी पीछे छोड़ दिया है। 1950 में दक्षिण कोरिया की विकास दर हमसे बेहतर नहीं थी। लेकिन इ1सके बादउसने स्किल विकास में निवेश करना शुरू किया। यही वजह है कि 1980 तक वह भारी उद्योगों का हब बन गया। उसके 95 प्रतिशत मजदूर स्किल्ड हैं या वोकेशनलीट्रेंड हैं, जबकि भारत में यह आंक़डा तीन प्रतिशत है। ऐसी हालत में भारत कैसे आर्थिक महाशिक्त बन सकता है ?

स्किल इंडिया बनाने के उद्देश्य से मोदी सरकार ने अलग मंत्रालय बनाया है। नेशनल स्किल डेवलपमेंट मिशन भी बनाया गया है।केन्द्रीय बजट में भी इसके लिए अनुदान दिया गया है ।  मलतब पहली बार कोई केंद्र सरकार इसके लिए इतनें संजीदगी से काम करने की कोशिश कर रही है । इसे देखते हुए लगता है कि स्किल डेवलपमेंट  को लेकर केंद्र सरकार की सोच और इरादा तो ठीक है लेकिन इसका कितना क्रियान्यवन हो पायेगा ये तो आने वाला समय ही बताएगा । जबकि तकनीकी और उच्च शिक्षा का यह सबसे जरुरी और महत्वपूर्ण पहलू है जो हर मायने में देश के विकास को प्रभावित करता है।बिना स्किल के और लगातार बेरोजगारी बढ़ने की वजह से इंजीनियरिंग कालेजों में बड़े पैमाने पर सीटें खाली रहने लगी है । उच्च और तकनीकी शिक्षा के वर्तमान सत्र में ही पूरे देशभर में 7 लाख से ज्यादा सीटें खाली है । इसने भारत में उच्च शिक्षा की शर्मनाक तस्वीर पेश की है । यह आंकड़ा चिंता बढ़ाने वाला भी है, क्योंकि स्थिति साल दर साल खराब ही होती जा रही है । एक तरफ प्रधानमंत्री देश के लिए ‘मेक इन इंडिया “की बात कर रहें है वही दूसरी तरफ देश में तकनीकी और उच्च शिक्षा के हालात बद्तर स्तिथि में है । ये हालात साल दर साल खराब होते जा रहें है । सच्चाई यह है कि देश के अधिकांश इंजीनियरिंग कॉलेज डिग्री बाँटने की दूकान बन कर रह गयें है ।इन कालेजों से निकलने वाले लाखों युवाओं के पास इंजीनियरिंग की डिग्री तो है लेकिन कोई कुछ भी कर पाने का “स्किल “ नहीं है जिसकी वजह से देश भर में  हर साल लाखों लाखों इंजीनियर बेरोजगारी का दंश झेलने को मजबूर है ।  सरकार का सारा ध्यान सिर्फ कुछ सरकारी यूनिवर्सिटीज ,आईआईटी, आईआईएम् ,एनआईटी जैसे मुट्ठीभर सरकारी संस्थानों पर है । जबकि देश भर में  95 प्रतिशत युवा निजी विश्वविद्यालयों और संस्थानों से शिक्षा लेकर निकलते है और सीधी सी बात है अगर इन 95 प्रतिशत छात्रों पर कोई संकट होगा तो वो पूरे देश की अर्थव्यवस्था के साथ साथ सामाजिक स्तिथि को भी नुकसान पहुंचाएगा । सिर्फ 5 प्रतिशत सरकारी संस्थानों की बदौलत विकसित भारत का सपना साकार नहीं हो सकता ।

उच्च शिक्षा में जो जो मौजूदा  संकट है उसे समझनें के लिए सबसे पहले इसकी संरचना को समझना होगा मसलन एक तरफ सरकारी संस्थान है दुसरी तरफ निजी संस्थान और विश्वविद्यालय है । निजी संस्थानों  भी दो तरह के है  एक वो है जो छात्रों को डिग्री के साथ साथ हुनर भी देते है जिससे वो रोजगार प्राप्त कर सकें ,ये संस्थान गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देने के लिए प्रतिबद्ध है और उसके लिए लगातार प्रयास कर रहें है ,ये छात्रों के स्किल डेवलपमेंट पर ध्यान देते हुए उन्हें उच्च स्तर की ट्रेनिंग मुहैया करा रहें है । वही दुसरी तरफ कई प्राइवेट संस्थान सिर्फ डिग्री देनें की दूकान बन कर रह गएँ है। ये खुद न कुछ अच्छा करतें है बल्कि जो भी संस्थान बेहतर काम करनें की कोशिश करता है उसके खिलाफ काम करने लगते है ,साथ में अच्छे संस्थानों को बेवजह और झूठे तरीके से बदनाम करने की भी कोशिश की जाती है । कहने का मतलब यह कि जो संस्थान देश हित में ,छात्र हित में कुछ इनोवेटिव फैसले ले रहे है वो सरकारी लाल फीताशाही का शिकार हो रहे है । कुल मिलाकर यह स्थिथि बदलनी चाहिए । दशको पुरानें क़ानून बदलने चाहिए और हर संस्थान चाहे वो सरकारी हो या निजी हो उसे अपने स्तर पर छात्रों को स्किल ट्रेनिंग की आजादी मिलनी चाहिए इसके साथ ही देश के सभी तकनीकी और उच्च शिक्षण संस्थानों में स्किल डेवलपमेंट को शिक्षा का अनिवार्य अंग बनाने की कोशिश होनी चाहिए। हमें यह बात अच्छी तरह से समझनी होगी की “”स्किल इंडिया”” के बिना “”मेक इन इंडिया”” का सपना भी नहीं पूरा हो सकता ।इसलिए इस दिशा में अब ठोस और समयबद्ध प्रयास करनें होंगे। इतनी बड़ी युवा आबादी से अधिकतम लाभ लेने के लिए भारत को उन्हें स्किल बनाना ही होगा जिससे युवाओं को रोजगार व आमदनी के पर्याप्त अवसर मिल सकें । सीधी सी बात है जब छात्र स्किल्ड होगें तो उन्हें रोजगार मिलेगा तभी उच्च और तकनीकी शिक्षा में व्याप्त मौजूदा संकट दूर हो पायेगा ।

देश में युवाओं को हुनरमंद बनाने के उद्देश्य से केद्र सरकार ने “स्किल इंडिया “ कार्यक्रम लाँच किया है । देश के करोड़ों युवाओं को स्किल्ड बनानें के लिए यह अभियान सरकार का एक सकारात्मक कदम है ।

क्याा है स्किल इंडिया मिशन  
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुशल कामगार तैयार करने और युवाओं को हुनरमंद बनाने के लिए स्किल इंडिया मिशन लांच किया है। मोदी ने वर्ल्ड  यूथ स्किल डे के अवसर पर इस मिशन की शुरुआत की जिससे इसकी अहमियत और बढ़ गई। सरकार का लक्ष्य  इस मिशन के जरिए साल 2022 तक 40.2 करोड़ लोगों को प्रशिक्षित करना है। जिसमें 10.4 करोड़ युवाओं को स्किल ट्रेनिंग देकर ट्रेंड किया जाएगा जबकि इसी अवधि तक 29.8 करोड़ मौजूदा वर्कफोर्स को अतिरिक्तओ स्किल ट्रेनिंग भी इसके तहत देने की योजना है। दरअसल सरकार के स्किल इंडिया मिशन का मुख्य् टारगेट भी यही है। इस मिशन के जरिए शिक्षा के साथ-साथ युवाओं को स्किल डेवलपमेंट में प्रशिक्षित करने पर रोजगार के अवसर उपलब्धम होंगे।

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इस मिशन को लांच करते हुए मोदी ने कहा कि इस सदी की सबसे बड़ी जरूरत आईआईटी नहीं, बल्कि आईटीआई है। क्योंकि, नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसएसओ) के मुताबिक देश में सिर्फ 3.5 फीसदी युवा ही हुनरमंद हैं। जबकि देश को 2019 तक 12 करोड़ स्किल्ड लेबर की जरूरत है। इस लिहाज से भी स्किल इंडिया मिशन देश के लिए एक बड़ा अभियान है। इसके तहत सरकार असंगठित क्षेत्र के लोगों को ट्रेनिंग देगी। सरकार इस मिशन के जरिए युवाओं को हुनरमंद बनाकर रोजगार के काबिल बनाएगी जिसके लिए हर राज्य  में स्किल यूनिर्वसिटी खोली जाएगी। इस मिशन के लिए सरकार ने इस साल बजट में 5040 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। इसके अलावा यह मिशन मोदी के मेक इन इंडिया को भी सफल बनाने में सहयोग करेगी।

स्किल डेवलपमेंट में भारत की स्थिति
स्किल डेवलपमेंट के मामले में दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले भारत काफी पीछे है। नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसएसओ) के मुताबिक देशभर में सिर्फ 3.5 फीसदी युवा ही हुनरमंद हैं। जबकि चीन में 45 फीसदी, अमेरिका में 56 फीसदी, जर्मनी में 74 फीसदी, जापान में 80 फीसदी और दक्षिण कोरिया में 96 फीसदी लोग स्किल ट्रेंड हैं। इसी दूरी को पाटने के लिए सरकार ने स्किल इंडिया मिशन की शुरुआत की है। इस मिशन को सफल बनाने में केंद्र सरकार के कई मंत्रालयों की भी अहम भूमिका होगी।

स्किल इंडिया मिशन की खासियत
स्किल इंडिया का उद्देश्य देशभर में युवाओं को उनकी योग्यता के अनुसार ट्रेनिंग देकर रोजगार उपलब्ध कराना है। सरकार स्किल इंडिया के तहत युवाओं को उनकी पसंद और हुनर के साथ ट्रेनिंग देगी। ताकि 2020 तक 40.2करोड़ युवाओं को ट्रेंड किया जा सके। जिसके लिए स्किल इंडिया को 2016 तक स्कूंल के सिलेबस में भी शामिल किया जाएगा। इसके लिए सरकार 2009 की स्किल डेवलपमेंट पॉलिसी को भी अपडेट करेगी।
सरकार ने इस मिशन को सफल बनाने के लिए स्किल डेवलपमेंट और आंत्रपेन्योर मंत्रालय का गठन पूर्व में कर चुकी है। जिसके तहत देशभर में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) के जरिए 24 लाख युवाओं को ट्रेनिंग दी जाएगी। इसको सफल बनाने के लिए सरकार निजी क्षेत्रों की भागीदारी बढ़ाने पर भी जोर देगी। इसके लिए व्यापक नीति तैयार की गई है जिसमें निजी क्षेत्रों की भागीदारी से लेकर स्किल लोन जैसी कई सुविधाओं का प्रावधान किया गया है। स्किल लोन स्कीम के तहत 5 सालों में 34 लाख स्किल्ड बेरोजगार युवाओं को लोन देगी सरकार। इसके साथ ही स्किल डेवलपमेंट के लिए पीपीपी प्रोजेक्ट् भी शुरू किया जाएगा।

साल 2022 तक 40.2 करोड़ युवाओं को ट्रेनिंग

दरअसल साल 2022 तक देश में 10.4 करोड़ युवाओं को स्किल ट्रेनिंग देने की जरूरत है जबकि इसी समय सीमा में 29.8 करोड़ की मौजूदा वर्कफोर्स को भी अतिरिक्त स्किल डेवलपमेंट ट्रेनिंग की जरूरत होगी। सरकार का लक्ष्य  साल 2022 तक कुल 40.2 करोड़ लोगों को ट्रेनिंग देने का है। जिसे पूरा करने के लिए नेशनल स्किल डेवलपमेंट मिशन के जरिए ट्रेनिंग देकर युवाओं को हुनरमंद बनाया जाएगा ताकि उनको रोजगार मिल सके। इस मिशन से 160 ट्रेनिंग पार्टनर्स और 1722 ट्रेनर्स जुड़े हैं। अब तक करीब 35 लाख लोगों को ट्रेनिंग दी जा चुकी है। 20 सरकारी संस्थाएं स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम को चला रही हैं। जबकि विशेष तौर पर रेलवे ने भी इस मिशन के लिए 450 संस्थाओं और ट्रेनिंग सेंटर को चुना है।
मिशन के तहत 5 साल में 34 लाख को कर्ज

अन्य  मिशन की तरह स्किल इंडिया मिशन भी मोदी का एक बड़ा ड्रीम प्रोजेक्ट  है। इसके जरिए सरकार प्रत्येक सेक्टर के लिए एक्सपर्ट्स की फौज तैयार करेगी ताकि देश को तरक्कीो के पथ पर आगे ले जाया जा सके। इसको सफल बनाने के लिए सरकार लोगों को ट्रेनिंग से लेकर लोन तक की भी सुविधा उपल्ब्धर कराएगी।


शशांक द्विवेदी
(लेखक मेवाड़ यूनिवर्सिटी ,चित्तौडगढ़ ,राजस्थान में डिप्टी डायरेक्टर (रिसर्च ) तथा टेक्नीकल टूडे पत्रिका के संपादक है .विज्ञान विषयों पर केंद्रित वेबसाइट विज्ञानपीडिया डॉट कॉम के संचालक है .हिंदी में विज्ञान-प्रौद्योगिकी विषयों पर देश के प्रमुख अख़बारों और पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन . विज्ञान लेखन के लिए टीवी चौनल एबीपी न्यूज द्वारा सर्वश्रेष्ठ ब्लॉगर के पुरस्कार से सम्मानित )

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